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An ancient varta as narrated by ShreeNathji Himself on the 16 March 2016

..”एक दिन वल्लभाचार्य मुझे सुला रहे थे। वे मेरे चरण दबाते थे और लोरी गा कर सुलाते थे..



१६ मार्च २०१६ की बात है

"एक दिन वल्लभाचार्य मुझे सुला रहे थे। वे मेरे चरण दबाते थे और लोरी गा कर सुलाते थे।

वे देखते रहते थे मैं सोया की नहीं। जब मैं सो जाता तो वे भी चले जाते थे आराम करने।

लेकिन उस रात मैं जागता ही रहा, सोया ही नहीं। और मळसका (प्रथम प्रहार) होने को आया।

वल्लभाचार्य ने धीरे से कोमलता से कहा,

'अरे लाला, मुझे तो जाकर मंगल भोग की तय्यारी करनी है, अभी एक घंटे में मळसका (प्रथम पहर) होने वाला है’।

तो मैंने उनको जवाब दिया, 'हाँ हाँ जाओ, तैयारी कर लो; मैं तो यहाँ बैठा ही हूँ. कोई बात नहीं’।

लेकिन तैयारी कर के वापस आए तो देखा की मैं सो गया था। हा हा हा; अब मुझे उठा तो नहीं सकते थे; तो सब लोग राह देखते रहे की श्रीजी कब जागेंगे।

लेकिन उस दिन मैं लेट उठा था। और मंगला ७.३० बजे हुआ।

मैं क्या करूँ”।


जय हो श्रीजी बाबा!

कृपा आपकी

(गुरुश्री की अनुमति से, और श्रीनाथजी की आज्ञा से)

आभा शाहरा श्यामा


On the16th March 2016


ShreeNathji, “One fine day Vallabhacharya was putting Me to sleep. He would always press my feet and sing a lullaby for Me.

In between he would keep checking if I was asleep or no. Once I slept, he would also go and get some rest.

But on that particular night I keep awake, I did not sleep at all. And it was going to be dawn soon.

Worried, Vallabhacharya softly tells Me,

‘Arrey Lala, I have to get the Mangal bhog preparations ready. In one hour it will be dawn’.

So then I reply to him, ‘Okay, you can leave, I will be here waiting, it is okay’.

But when he returns he sees that I am asleep. Ha ha ha; He cannot wake Me up, so that day all waited outside for Me to wake up.

But that day I wake up really late. Mangla opened at 7.30 that day. What can I do”?


Jai ho Shree Baba!

Kripa Apki

(With permission from Gurushree and hukum from ShreeNathji)

Abha Shahra Shyama



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1 Comment


Aradhana Sharma
Aradhana Sharma
Jul 26, 2021

प्यारे श्रीजी ,आप की लीला को समझना बहुत कठिन है मन बुद्धि में वो शक्ति कहाँ है प्यारे जो आपकी लीला समझ पाएं।आप तो लाड़ले लाल हो लाड़, प्यार व प्रेम की डोर से बंध जाते हो । आप प्रेम आनंद का महा सागर हो ।संसार मे भी जहां प्रेम होता है वहां कोई प्रयत्न नही रहता कोई अभ्यास भी नही प्रेम व प्रेमी एक हो जाते है आपके प्रेम व रस में पगा प्रेमी ,प्राण प्रीतम को हृदय से लाड़ लड़ाता है प्रेम कभी पूर्ण नही होता नित्य वर्धन है नित्य वृद्धि। हर चेष्टा उन्ही के नाते, उन्ही के लिए ,उन्ही के सेवा भोग हेतु।सब उन नित्य को समर्पित ,वो नित्य हमारे। श्रीजी का मन हमारा मन क्योंक…

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