क्या पाया, क्या कमाया, क्या साथ ले जा रहा है.
मौत सामने खड़ी है,
"चलो समय पूरा हुआ तेरा, लेने आया हूँ"
किंतु अजीब है इंसान, अभी भी आँख नहीं खुली!
"मैंने बहुत दौलत इखट्टी करी है,
उसमें से जितना चाहो ले लो,
मुझे कुछ समय और दे दो”.
हँसती है मौत उसपर,
"तूने दुनिया के अंधो को दौलत की चमक दिखाकर खरीद लिया,
अब ये दौलत काम नहीं आएगी;
हाँ, कुछ प्रभु का नाम जपा हो, सतकर्म करा हो, तो मौत सुहानी जरूर हो जाएगी".
हाथ जोड़े, पर मौत को ना खरीद सका,
जो भी कमाया था, जबरन यहीं छोड़ चला।
“अगली बार ऐसी गलती नहीं करूँगा, समय रहते सतकर्म जरूर करूँगा”;
लेकिन कुछ कर्म अच्छे होंगे तो यह शब्द याद रहेंगे,
नहीं तो यही दर्दनाक सत्य आखिरी समय फिर दोहराते रहेंगे.
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