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Live Vartas with Shree Thakurjee

“Live interactions” with Shree Thakurjee

श्रीनाथजी से जीवंत बात-चीत; क्या आज के समय में मुमकिन है?


क्या प्रभु श्री राधा कृष्ण स्वयं, श्रीनाथजी स्वरूप हमारे बीच जागृत है ?

श्री ठाकुरजी का जीवंत वृत्तान्त उनके हुकुम से भक्तों के बीच हम उजागर कर रहे हैं


“Live interactions” with Shree Thakurjee (Present Form of Shree RadhaKrishn); Is it possible in our world today, in the current time period?

Varta is a story. ShreeNathji varta would mean stories of “Personal Divine interaction” with Thakurjee ShreeNathji in our world in the present time period.


(Same post in english can be read at the end of the hindi post)


ऐसा मानना है की दिव्य शक्तियाँ लम्बे अरसे के लिए सुशुप्त जाती हैं। निर्धारित समय पर जब दिव्य लीला दोहरानी होती है, या फिर पूर्ण करनी होती है, तब प्रभु स्वयं की मर्जी से, गोलोक की कोई दिव्य गुरुआत्मा जन्म लेकर आती है, और सुशुप्त ठाकुरजी शक्ति को एक बार फिर जागरत होने में मदद करती है।


श्री ठाकुरजी, श्रीनाथजी, श्री गोवर्धन नाथजी हमारे बीच जागरत हैं, और अपना दिव्य खेल अपने भक्तों के साथ लीला स्वरूप कर रहे हैं। सभी भक्त जन को भी आनंद मिले, और ठाकुरजी का एहसास हो, इसलिए उनके स्वयं के हुकुम से, कुछ एक बात-चीत आप सबके बीच उजागर कर रहे हैं।'८४ वैष्णव' और '२५२ वैष्णव के वार्ता' जैस खेल श्री ठाकुरजी आज फिर दोहरा रहे हैं।

जब भी हुकुम मिलेगा हम आपके बीच श्रीनाथजी के कहने अनुसार, कोई लीला खेल का उजागर करेंगे।

यह ठाकुरजी स्वयं के हुकुम और इच्छा से हो रहा है। गुरुश्री सुधीर भाई ने भी इजाजत दे दी है। मैं भक्त तो सिर्फ़ एक निमित मात्र हूँ, प्रभु की कृपा पात्र हूँ।


ठाकुरजी की मर्जी है उनका आशीर्वाद भक्तों तक पहुँचकर उन्हें भक्ति और समर्पण के महत्व का एहसास दिलाए। यह एक प्रसाद के रूप में मिले और याद दिलाए।

श्रीनाथजी एक बार फिर मंदिर से बाहर अपने भक्तों को अपने दिव्य स्वरूप और मस्ती का आनंद देने खेल कर रहे हैं।


ऐसी ही एक दिव्य वार्ता आपके लिए: श्रीनाथजी और इस दीन भक्त के बीच..

श्रीनाथजी कैसे मुझे उनका ‘बेस्ट फ्रेंड बनाते हैं:

@नाथद्वारा हवेली


..नाथद्वारा हवेली के बाहर मंगला दर्शन के लिए खड़े हैं, अचानक मुझे श्रीजी की मधुर गुंजन सुनाई दी, जैसे की वे कुछ शिकायत करना चाह रहें हैं|

श्रीजी: “यह मुखिया सिर्फ ‘फिरकी’ घुमाता रहता है इतने सालों से, मैं बोर हो गया। मैं तो यहाँ से भाग जाता हूँ; कुछ नया तो सोचते ही नहीं। देखो मुझे कैसे लालच देकर काम करवाते हैं; एक लड्डू ज्यादा देकर कहते हैं की मेरा काम करो; कोई मेरे साथ खेलने या मस्ती करने तो आता ही नहीं”.

इस अनुभूति से बहुत आनंदित होकर मैंने जवाब देने की कोशिश करी;

मैंने कहा: ‘श्रीजी अगर आप चाहें तो मैं आपकी फ्रेंड बन सकती हूँ, आपके साथ खेल सकती हूँ, अगर आप मुझसे दोस्ती करना चाहें तो’ .

मैं आस्चर्या चकित होगई श्रीजी से यह जवाब सुनकर;

श्रीजी; “ओके तुम मेरी फ्रेंड हो; मैं तुम्हारे साथ खेलने आऊंगा। तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो और सिर्फ तुमही हमेशा मेरी फ्रेंड रहोगी, और कोई नहीं”.

तभी से, श्रीजी ने उनकी कही हुई बात निभाई है, और मुझे कई दिव्य अनुभूति का हिस्सा बनाया है. ऐसे बहुत सारे अमूल्य क्षण का हिस्सा बनी हूँ जब श्रीजी की कृपा से उनकी दिव्य हाजिरी और उनकी मधुर आवाज के गुंजन से लीला और खेल करते हैं.

श्रीजी मेरे महागुरुश्री भी बनने के लिए मान गए हैं. (पूर्ण वार्ता, आप वार्ता चैप्टर में पढ़ सकते हैं)

ठाकुरजी की आवाज कभी एक नन्हें बालक के तरह मधुर और मीठी होती है, कभी थोड़ी बड़ी उम्र के जैसे बातचीत करते हैं, जब कुछ गम्भीर बात बतानी होती है तो बड़े श्रीजी जैसे बात करते हैं।

सोचती हूँ की शायद ऐसा भी हो सकता है की, श्रीजी यहाँ से और कहीं चले जाना चाहते हों, या भाग भी जाते होंगे मंदिर से तो कौन जान पाएगा? अपना समय कुछ चुने हुए भक्तों के साथ बिताना चाहते हों;

इतना तो जरूर है, की मेरे कुछ पिछले जन्म के संस्कार शुभ हैं, की ठाकुरजी स्वयं ने इस जीवआत्मा को चुना इन पवित्र अनुभव और खेलके लिए!

मेरी प्रार्थना है, की जो भरोसा भगवान श्रीनाथजी और गुरुश्री सुधीर भाई मुझ पर करते हैं मैं हमेशा उसे पूर्ण शुद्धि भाव से निभा सकूँ।


हमेशा पूर्ण शुद्धि और नम्रता के साथ आपके दिव्य चरणों की सेवा में

आभा शाहरा श्यामा

जय हो प्रभु!🙏


It is believed Divya Shaktis can become dormant for unlimited period of time. And then one fine day, as per Divine wish, when some divine leela is to be repeated; or completed, a Divine guru from Golok is born who awakens the divine shakti once again.


As per the desire of Bhagvan Himself, our own Thakurjee, ShreeNathji, Shree GovardhanNathji is ‘Alive’ once again in our midst; granting extreme joy and bliss to His chosen bhakts.And today, in our current time period, ShreeNathji does His Divine Plat and leela with His chosen bhakts, and wishes that some of them should be documented and spread to all His bhakts.(It is like a repeat of the 84 Vaishnavs or 252 Vaishnav Ki Vaarta, in today’s time period)(Link- Historical vartas of ShreeNathji’)


And here in His very own website with His direct hukum; bhakts will be able to read and enjoy the bliss of divinity. Few Divine personal interactions with Thakurjee Shreenathji are being made public.This has been only with ShreeNathji’s direct Hukum and desire; and of course my Gurushree’s permission. These particular divya anubhutis,(divine experiences) have been selected from several others, and I have been made a nimit(mediator) for bringing them to you.

ShreeNathji, who is my “MahaGurushree”, has wanted these few Vartaas (Divine interaction stories)to highlight His Play in our world as it happens today. It is His personal desire that few divine leelas be highlighted and spread to all His bhakts in our world. The intentions would be to show the world Thakurjee’s Living Presence, and prove the power of bhakti and surrender. This may be as a Prasad for His bhakts or just to let all know that He is out of His mandir once again, ready to delight His bhakts with the anand and bliss of His Living Presence!


How ShreeNathji makes me His best friend!

Excerpt from one of the divya vartas(divine interaction story) happening in our world today; between ShreeNathji and this humble bhakt:


…Waiting for darshan to open early morning at Nathdwara suddenly I hear ShreeNathji’s sweet and melodious voice echoing inside, as if complaining,

Shreeji: “Since sooooo many years this mukhiya only rotates a phirkee.I have become very bored. I run away from here.They do not think of anything new. All tempt Me with an extra Laddoo to make Me do their work.No one comes to just play and have fun with me anymore”.

Over joyed in this anubhuti, I replied;

I ask Shreeji: “Shreeji, if You wish I could be Your friend. I will always play whenever You want; if You wish to accept my friendship”.

I was thrilled to receive an answer, immediately,

Shreeji: “Ok, you are my friend, I will come to play with you.You are my ‘best friend’ and you will be the only ‘friend’ I will ever have”.


And since then He has kept to His word, and made me a part of many Divine Leelas.There have been innumerable precious moments when I have been graced with ShreeNathji’s Divine Presence and the gunjan (echo) of Shreeji’s Divinely sweet voice, where He talks and plays various leelas.

Shreeji has agreed to be my MahaGurushree too. Complete varta can be read in the varta chapter.

At times this is the voice of a very young infant; at other moments like an older child or at times an adult talking about various happening.


Maybe Shreeji would actually want to move away and be elsewhere, maybe He actually runs away from the mandir after the first few moments of giving darshans;He could be spending His day with a few true devotees who keep total love and devotion- bhao for Him.In fact you will never truly know where He truly is today; as none is close enough to Him.

It is some very good past karma that Thakurjee Himself has selected this soul for such highly pavitr experiences.I pray that I am always able to keep up to the trust that has been bestowed upon me by myThakurjee ShreeNathji, and my Gurushree, Shri Sudhir bhai.


Always let me be in surrender and humility at Your divine Charan

Abha Shahra Shyama🙏

Jai Ho Prabhu!



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