..Shreeji: “मैंने थोड़ी सी मस्ती करी, तुम्हे आनंद आया की नहीं? चलो यह मेरा खेल मेरी वेबसाइट पर लिख देना। कोई पूछे की तुम यह कैसे लिख सकती हो, तो बोल देना की श्रीजी का हुकुम है..”
14th June 2008
आज भी हमारे बीच श्रीनाथजी अपना हवेली मंदिर छोड़ कर अपने चहेते भक्त के साथ खेलने जाते हैं।
ऐसा लगता है की ६०० साल पुरानी एतिहासिक वैशनव वार्ता एक बार फिर ठाकुरजी हमारे बीच दोहरा रहे हैं, अपने कुछ भक्तों के साथ लीला करते हैं।
Even today in our present time period, ShreeNathji leaves His Haveli Mandir to play with His Bhakts. This is like a repeat of the Vaishnav Vaartas from five hundred years ago, when He interacted with His chosen bhakts in the most Live manner.
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इस वार्ता में आपके साथ मैं एक बहुत ही अद्भुत और दिव्य अनुभूति बाँटना चाहती हूँ। नाथद्वारा में घटित यह प्रभु की आलोकिक लीला और खेल है।
I share my very special day at Nathdwara, when something very unique and miraculous happened. This very auspicious day was:
१४ जून २००८- निर्जला एकादसी; ज्येष्ठ सूद ग्यारस
14 June 2008 – Nirjala Ekadasi; Jyesth Sud gyaras
बहुत भीड़ होने के बावजूद हमने सुबह के तीनों दर्शन शांति पूर्ण करे। आश्चर्य होता है की इतनी भीड़ के बावजूद सभी भक्त नाथद्वारा के पतली गली और मंदिर परिसर में समा जाते हैं।
We completed the three morning darshans in peace; though because of the extreme crowds it becomes difficult even to walk at a regular pace. It is incredible how so many bhakts are accommodated in the narrow lanes and the mandir parisar.
आज राजभोग दर्शन(हर दिन का यह चौथा दर्शन होता है)में श्रीजी ने यह अद्भुत और दिव्य खेल खेला। बड़े मुखियाजी आज सेवा में है। हम 'डोलती बारी' में श्रीनाथजी के सम्मुख दर्शन का आनंद ले रहे हैं। मुखियाजी श्रीजी का श्रींगार पूर्ण भाव से कर रहे हैं।
It was in Rajbhog Darshans (This is the fourth darshan of the day) that Shreeji did this unique leela. It was the senior Mukhiyaji in sewa today. We stood praying in the Dolti Baari,(darshan hall) before Shreeji, and watched Mukhiyaji complete the final Shringar for Shreeji.
जिन भक्त को नाथद्वारा दर्शन के लिए आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, वे जानते हैं की राजभोग दर्शन में श्रीनाथजी को बाँसुरी जी और छड़ीजी अर्पण करी जाती है। उनके बगल में ३ या ४ कमल भेंट करते हैं।
All who may have been here know that Shreeji is offered His Bansuri jiand Chadi ji in the Rajbhog darshan. His three or four Kamal are also offered on His arms, around His waist.
मैं शांत और गम्भीरता से मुखियाजी को श्रीनाथजी का शृंगार धरते दर्शन कर रही हूँ। मुखियाजी श्रीनाथजी को पहले दो कमल धर चुके हैं, जो श्रीजी ने स्वीकार कर लिए। आश्चर्य हुआ की जब वे तीसरा कमल चढ़ाते हैं तो श्रीजी स्वीकार नहीं करते हैं।
I stand at peace, transfixed as I watch Mukhiyaji complete Thakurjee's shringar. He carefully places the first two Kamal flowers on Shreeji’s waist; but surprisingly, as he tries placing the third one, Shreeji refused to accept this lotus.
अचानक उसी पल मुझे श्रीजी की मधुर गूँज अपने कान में सुनाई दी,
“अरे हटाओ मुझे चुबता है”
Instantly at the same moment I hear Shreeji’s sweet, melodious voice whisper in my ears,
"Arrey, take it away, it pricks Me”
उसी पल हमने देखा की मुखियाजी तीसरा कमल फूल श्रीजी से दूर हटा रहे हैं ।
श्रीजी जो कुछ मेरे कान में बोल रहे थे, उसी पल मुखियाजी वह आदेश का पालन सामने सेवा में कर रहे थे।
In that immediate moment I saw Mukhiyaji take the third lotus away from Shreeji.
It was in perfect timing as I heard Shreeji say these words in my ears, that the Mukhiyaji also followed the same instructions in seva.
नियम है की अगर श्रीजी सेवा अंगीकार नहीं करते तो सेवा कर रहे मुखियाजी साक्षात दण्डवत से माफी माँगते हैं, जो इन मुखियाजी ने अभी करी.
When Shreeji refuses anything the Mukhiyaji doing seva has to do a shashtang bow and ask for forgiveness; which he did.
तुरंत मुझे श्रीजी की नटखट मधुर खिलखिलाहट कान में सुनी,
“देखो मैंने कमल नहीं लिया; उसको बोला हटाओ, हा हा हा; मैं ऐसे ही खेल करता हूँ”.
Immediately I heard Shreeji’s naughty laughter in my ear,
“See I did not accept it, told him to remove it. Ha, ha, ha, I like to Play in this way”.
मुझे अपने आँख और कानों पर भरोसा नहीं हो रहा है। यह तो साक्षात दर्शन की कृपा है, ठाकुरजी की। श्रीनाथजी हमारे इतने नजदीक से लीला कर रहे हैं। मैंने गर्दन घुमाई लेकिन ऐसा लगा की सबने इस दिव्य लीला को देखा, किंतु किसीने यह आवाज नहीं सुनी और समझे नहीं श्रीजी का खेल है।
परम आनंद है।
हमने आरती पूरी करी, दण्डवत करके ‘डोलती बारी’ से बाहर आ गए।
I could not believe my eyes and ears. This was Sakshat Darshans. Shreeji was here with us blessing us so closely. I looked around, but though all saw what had happened, no one else seemed to hear Shreeji's voice.
What bliss!
We did the Aarti, bowed and left.
दर्शन करके जैसे ही हम हवेली से बाहर निकले, मुझे फिर से श्रीजी की मौजूदगी का एहसास हुआ। श्रीजी की मधुर आवाज सुनाई दी, जो नटखट, मस्ती भरी स्वर में बातचीत कर रहे थे;
As we walked out of the Haveli, I again realised Shreeji’s Presence with us. I hear His sweet voice again, speaking in a very amused and naughty tone;
श्रीजी कह रहे थे: “मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। आज मुझे बहुत मजा आया, वोह मुखिया को मैंने बेवकूफ बनाया; हा हा हा।
मुझे कुछ नहीं चुबता था। वह तो आज तुमको मेरा खेल दिखाना चाहता था।
तू हमेशा बोलती रहती दर्शन देने के लिए, तुम्हे आज दर्शन दे दिया।
मुखिया की कोई गलती नहीं थी, वह तो मेरा खेल था सिर्फ तुम्हारे लिए।
मैंने थोड़ी सी मस्ती करी, तुम्हे आनंद आया की नहीं?
चलो यह मेरा खेल मेरी वेबसाइट पर लिख देना।
कोई पूछे की तुम यह कैसे लिख सकती हो, तो बोल देना की श्रीजी का हुकुम है”।
Shreeji spoke: “I will come with you’ll. I had a lot of fun today, I fooled the Mukhiya, ha,ha, ha. Nothing was pricking me. I only wanted to show you My Play.
You always keep asking for darshans, I showed you my Play today.
It was my Leela only for you today, the Mukhiya did not commit any mistake.
I just did some maasti. Did you enjoy in this?
Ok, write about My Play on ‘MY’ website.
If anyone asks why you have written, say that it is Shreeji’s hukum”.
श्रीजी आगे कहते हैं, “यह तुम्हारा प्रसाद आज के लिए। अब 'टिक टिक' मत करना। बहुत दिमाग खाती रहती है की दर्शन कराओ, मेरा भी और इसका(गुरुश्री)भी ”।
Shreeji continues talking, “This is your Prasad for today, hence forth stop all your tik, tik (pestering), you keep eating My head and his (Gurushree’s), for My Darshans”.
पूरे दिन यह अद्भुत लीला मेरे विचार में घूम रही है। बार बार सोच में है की ठाकुरजी के साक्षात्कार पाने लायक मैं ने क्या कर्म किया होगा। श्रीजी तो साथ ही थे, शायद इस विचार को पकड़ लिया।
Later in the day all this happening was very strong in my mind. I wondered what good karm had I done to deserve this Sakshatkar Darshan?
As Shreeji was with us only, He must have realised this thought in my mind.
कुछ समय बाद श्रीनाथजी ने मुझे समझाया, "सुधीर ने आज सुबह मुझ से विनती करी थी, 'श्रीजी इसको (आभा) कुछ दर्शन देने की कृपा करें, इसका मन बहुत शुद्ध है और यह आप पर पूर्ण भाव और श्रद्धा रखती है’।
तो देखो, मैंने तुम्हें कितने अच्छे दर्शन दिए” ।
ShreeNathji later explained to me, “Sudhir had requested me today morning, ‘Shreeji, please grant her (Abha) Your Darshans; she is fully surrendered to You and keeps complete bhav and shraddha on You’.
So I gave such Live Darshans to you. Ha Ha Ha..”
मैंने श्रीजी से पूछा, "श्रीजी, मुखियाजी को कैसे पता चलता है की आप कुछ शृंगार स्वीकार नहीं करेंगे"?
I ask Shreeji, “Shreeji, how does the Mukhiyaji come to know that You will not accept”?
श्रीजी जवाब देते हैं, "मैं उस चीज को मुझे छूने नहीं देता हूँ। वह मुझसे दूर होती रहती है”।
Shreeji replies, “I do not let the object touch Me, it keeps jumping away from Me”.
जिसका मतलब हुआ की श्रीजी उस शृंगार को अपने पास नहीं आने देते, जो उन्हें उस समय स्वीकार नहीं करना होता है। वह उनकी शक्तिशाली प्रकाश से दूर रहता है।
Which would mean that He keeps blowing it away from Him, so the Mukhiyaji is not able to get it close to Him, it like gets ejected from Him)
और ज्यादा क्या लिखूँ या समझाने की कोशिश कर सकती हूँ?
अलोकिक लीला और दिव्य खेल दर्शन सिर्फ शुद्ध भाव और श्रद्धा में समझे जा सकते हैं।
यह श्रीनाथजी की हवेली है। यहाँ श्रीनाथजी का दिव्य स्वरूप विराजमान है। श्रीजी यहाँ व्रज से उठ कर पधारे थे। इस मंदिर, हवेली में कुछ सेवक ऐसे भी हैं जिन्हें श्रीनाथजी का दिव्य अनुभव होता है।
What do I write or say or explain further? Certain spiritual happenings are beyond logic and can be understood only in faith.
It is ShreeNathji’s mandir, where we all believe Shreeji Lives in a very Live manner. Many sewaks have had an anubhuti of His Presence in the mandir.
मेरे श्रीजी, बहुत कृपा आपकी,
My Dear Shreeji, Thank You for all the kripa and love on this bhakt.
आपकी जय हो
Jai Shreeji!
यह एक दिव्य लीला है, ठाकुरजी की। मैंने पूरी कोशिश करी है इसे उसी सादगी से आपके सामने रखने की, जितनी सादगी से प्रभु खेल कर देते हैं अपने भक्तों के साथ।
सिर्फ और सिर्फ श्रीनाथजी के हुकुम से और मेरे गुरुश्री के आशीर्वाद से आपके आनंद के लिए;
आभा शाहरा श्यामॉ
This is a divine leela happening. I have tried my best to bring before you with as much simplicity as the simplicity with which Prabhu does His play with His bhakts.
Only and only with direct command of ShreeNathji and my Gurushree’s blessings for your anand;
Abha Shahra Shyama
प्राणप्यारे श्रीजी आपकी मस्ती ही जगत को आनंद देती है आपकी हर लिखावट का सखी इन्तेजार करती है जानती है आपकी इच्छा के बिना ये लिख पाना असंभव है। आप हवेली में कहां रहते हो आपको तो अपने नित्य निज सखाओं व सखियों का संग व रंग भाता है व सखियाँ भी आपके इस रंग व संग में रंगने सदैव राह तकती है whenever n wherever you three are present it is something very unique n miraculous will going to happen . Because you want to give divy anand to your sakhas .आपकी लीला को कौन जान सकता है कौंन आपकी इच्छा के बिना आपको कुछ अर्पण कर सकता है आप ही सब के रचियता हो, ये…