श्री राधा कृष्ण, श्रीनाथजी की पवित्र लीला भूमि:
" व्रज के प्रेमी, व्रज मंडल को बचाना आपके हाथ में है”
श्री राधा कृष्ण, श्रीनाथजी की पवित्र लीला भूमि में आपका स्वागत है।
आप यहाँ आए हैं, आपको व्रज के हर शुभ चिन्तक का प्रणाम।
(आपसे विनती है, कृपया पूरा पोस्ट पढ़िए, और सहमत हैं तो औरों तक पहुँचाने में मदद करिये. अपने विचार कमेंट्स में जरूर शेयर करिये).
इस पवित्र लीला भूमि पर जो भी आते है, वह चाहे किसी भी मनोरथ से आते हो, कुछ आशीर्वाद लेकर ही लौटते है।
किंतु, आज के कलियुग में, हम जो दर्शन के लिए, कुछ पाने की लालसा से, इस पवित्र लीला भूमि में पैर रखते हैं, यहाँ के लिए दुखदायक हो रहा है।
ग़लत मत समझिए; मेरा सही मतलब कृपा कर के आगे पढ़िए।
“इस पवित्र भूमि पर अपवित्रता कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है।
पवित्र शक्तियाँ को हम मजबूर कर रहे हैं, की आप यहाँ से निकल जाइए”.
- क्योंकि, सर्वप्रथम बात यह है, कि यहाँ ज्यादा भक्त आ रहे हैं (जो कि बहुत ही अच्छी बात है), लेकिन दुर्भाग्य से इस प्रदेश की सरकार यहाँ की प्रगति नहीं चाहती, इसलिए सुविधा नहीं बढ़ा रही हैं।
कचरा कूड़ा का ढेर हर गली में इखट्टा है। कहीं भी कूड़ादान की सुविधा नहीं दी है। सफ़ाई के लिए प्रशासन अपना काम नहीं कर रही हैं।
लेकिन आप रूर मदद कर सकते हैं, की जब यहाँ आयें तो प्लास्टिक और थेरमोकोल का इस्तेमाल ही ना करें। दुकानदार से प्लास्टिक लेने से मना कर दें।
जब मैंने सफाई करवाने की कोशिश की तो यह तथ्य सामने आया की व्रज मंडल की पवित्र भूमि में ६ इंच तक यह प्लास्टिक अंदर धँस गया है। झाड़ू लगाते रहो, तो भीतर से प्लास्टिक निकलता ही जाता है। कुछ साल और ऐसे ही होता रहा तो आप को साफ़ सुथरी व्रज की रज कहीं नहीं मिलेगी।
- यहाँ पर बहुत ज्यदा बिल्डिंग सोसायटी और टाउन शिप का निर्माण हो रहा है; जिस कारण से प्राचीन लीला भूमि के पेड़ और पशु पक्षी से उनकी जगह छिन गई है।
भक्तों से विनती है, अगर आप सिर्फ इन्वेस्टमेंट के लिए पैसा लगा रहे हैं, तो कृपया रुक कर फिर से विचार कीजिये. अगर यहाँ रहने का विचार नहीं है तो, व्यर्थ में flat मत लीजिय। यहाँ बहुत अच्छे आश्रम और होटेल बने हैं, उनमें अच्छी सुविधा है, वहाँ रह सकते हैं।
अगर खरीददार ही नहीं होंगे तो प्राचीन वन को, काटकर यह व्यर्थ की इमारतें खड़ी करना बंद हो जाएगा।
बिल्डर्स और प्रशासन मिलकर इस भूमि की काफी तबाही कर चुके हैं, अगर अभी भी नहीं रुका तो आपको कोई प्राचीन पेड़ दिखाई ही नहीं देंगे ।
व्रज मंडल को दिव्य माना गया है, और यहाँ के वन और पेड़ो को दिव्य मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। श्री राधा कृष्ण की दिव्य लीला इन्ही वन में रची थीं, जिन्हें आज स्थानीय अधिकारी बिल्डर्स के साथ मिलकर कुछ पैसे के लालच में तबाह कर रहे हैं।
वे जानते ही नहीं की उनके लालच ने भक्तों से क्या छीन लिया है, क्योंकि उनमें भक्ति भाव नहीं है।
- प्रशासन ने हर दिव्य भूमि से लग कर, सफाई करने वालों का गाँव बसा दिया है।
उन्हें हर तरह की सुविधा और खेती के लिए मुफ्त भूमि भी प्रशासन की तरफ से मिली है।
जैसा कि हमें लोकल संतों ने बताया, इन गाँवों को बसाया था लीला भूमि की सफाई करने के लिए। लेकिन प्रशासन उन को सुविधा देकर जाँच करना ही भूल गयी कि वह अपना काम करते हैं या नहीं।
इन की औरतें ने जंगल काटना अपना अधिकार समझ लिया, और बहुत से प्राचीन पेड़ काट रही है घर में चूल्हा जलाने के लिए। अगर उन्हें कोई संत, या भक्त रोकने की कोशिश करता है, तो इन महिलाओं को अधिकार मिला है प्रशासन की ओर से; वह पोलिस में शिकायत करे, और बिना सुनवाई के उस व्रज के भक्त को जेल में डाल दिया जाता है।
इस कारण से व्रज के भक्त लाचारी से व्रज का नाश होते देख खामोश रह जाते हैं। क्योंकि प्रशासन में उनकी सुनवाई नहीं होगी।
इन गांववालों ने अपने बच्चों को सिखा दिया है, भीक माँगना। तो आप किसी भी स्थल पे जाइए, इनके बच्चों का झुंड आपको एक पल भी शांति से प्रार्थना नहीं करने देंगे। मुफ्त स्कूल भी नहीं जाना चाहते हैं यह बच्चे।
- तीर्थ स्थल के भिखारी, भगुए वस्त्र पहन कर अच्छी खासी कमाई करते हैं।
बहुत ही आसानी से कमाई हो जाती है, और आराम का जीवन बिताते है।
ज्यादातर सभी साधू भिखारी और छोटे बच्चे भिखारी, बीड़ी, चरस, गाँजा फूँकते हुए मिलेंगे। यहाँ के बच्चों को कामचोर मत बनाइये.
आप को सोच समझ कर दान करना चाहिए। पात्रता देखकर दान करिए।
तीर्थ स्थल, आराम की कमाई के स्थल होते जा रहे हैं।
इसलिए आप सभी व्रज भक्तों से हाथ जोड़ कर विनम्र प्रार्थना करती हूँ:
तीर्थ स्थल को पिकनिक स्पॉट नहीं बनाइए।
इस लीला भूमि की पवित्रता आप के हाथ में है, इसे बनाय रखने में आपका सहयोग जरूरी है। प्रशासन के भरोसे पर तो व्रज मण्डल का विनाश हो रहा है।
दिव्य शक्तियों को साफ, सुथरा पवित्र वातावरण चाहिए.
नहीं तो वह दिन दूर नहीं, की वे सब भूतल में गहरी उतर जाएँगी और हम हाथ मलते रह जाएँगे, अपने दुर्भाग्य पर। हमारे बच्चों को दर्शन का लाभ नहीं मिल पाएगा, और हम सब इसके ज़िम्मेदार होंगे।
जय श्रीनाथजी, जय श्री राधा कृष्ण
कृपा करें, सदबुद्धि दें,
आभा शाहरा श्यामा
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