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Shree BalKrushnlal Ji, at Surat

SHREE BALKRUSHNLAL JI


Presently Virajmaan at Surat (Gujarat)

Paat Utsav on Ashwin Shukla 12


This Divine Swarup of Shree Krushn is small and beautiful. He holds a laddoo in His Right Hand and crawls on His knees like a baby. (Lalan)

Shree BalKrushnlalji’s left leg is folded and rests completely on the ground. His right leg is folded too but is upright and the sole rests on the ground.


This Lalan Swarup of Shree Krushn is also called as Shree Lalji or Shree Laddoo Gopal.


Shree BalKrushnalal ji’s Swarup represents three Leelas of Shree Krushn as an infant.

Putana uddhar Leela

Trinavarta Leela

Shakat Bhanjan Leela


It is believed that Shree BalKrushnalalji’s Swarup got entwined in the ‘Janoi’ of Shri VallabhAchary when he was having his bath in the waters of Shri Yamunaji at Gokul Karnavedh Koop.

Shri VallabhAchary served BalKrushnlalji’s Swarup with great devotion. He then passed on the Seva to his son Gusainji who in turn passed it on to his sixth son Yadunathji.

However, Shri Yadunathji preferred to worship the Swarup of Shree Dwarkadheeshji together with his elder brother (Shri Gusainji’s third son, also named Shri Balkrishnlalji).

He therefore placed the Shree Krishn child Swarup of Shree Balkrushaji just in front of Shree Dwarkadheeshji.

Shree Balkrushlalji was later taken from Kankroli to Surat, where He resides today.


Shree Gusainji had the darshans of Shree BalKrushnlalji eating food directly before him and kept This Divine Form very close to him during his teerth yatra to Badrikashram.


Shree BalKrushnlalji’s Swarup was established in Gokul and later in Ahmedabad. This Swarup is at present in a Haveli at Surat now. I


Mool Aacharya’s Sevya Swaroop was Shri Balkrushnji / Shri Yadunathji

Sashtha Peeth: Shree BalKrishnlalji


Jai Shree RadhaKrishn


श्री कृष्ण निधि स्वरूप श्री बाल कृष्ण लालजी 🙏🙏

श्री वल्लभ आचार्य और श्री गुसाईंजी ने श्री कृष्ण के १२ दिव्य स्वरूप को मान्यता दी है, जो निधि स्वरूप कहलाते हैं।

उन्हीं में से लालन स्वरूप श्री बाल कृष्ण लालजी हैं। इन स्वरूप में आप दाँए हस्त में लड्डू लिए हुए हैं। आप बाएँ घुटने के बल पर बैठ कर दर्शन देते हैं।

श्री बाल कृष्ण लालजी का स्वरूप बाएँ पग को धरती पर टेक कर बैठे हैं। दाँए पग को ऊपर रख कर धरती पर टिका कर रखा है।

श्री कृष्ण के यह लालन स्वरूप श्री लालजी और श्री लड्डू गोपालजी भी कहलाते हैं।

वर्तमान में आप सूरत, गुजरात में विराजमान हैं।

श्री बाल कृष्णलाल जी के स्वरूप में, श्रीकृष्ण ने तीन बाल लीला रची थीं।

  • पूतना उद्धार लीला

  • तृणावर्त राक्षस वध लीला

  • शकटासुर राक्षस भंजन लीला

मान्यता है की जब श्री वल्लभ आचार्य गोकुल कर्णवेध कूप पर श्री यमुनाजी के जल में स्नान कर रहे थे, तब श्री बालकृष्ण लालजी के स्वरूप उनके जनेओ में अटक गए थे।

श्री वल्लभ आचार्य जी ने उन स्वरूप के बहुत प्रेमभक्ति से सेवा करी। दिव्य लीला में प्रवेश करते समय, वे उनके पुत्र श्री गुसाईंजी को सेवा सौंप कर गए। श्री गुसाईंजी ने अनंत लीला में प्रवेश करने से पहले श्री बाल कृष्ण लालजी की सेवा उनके छटे पुत्र श्री यदुनाथजी को सुपुर्द करी।

किंतु श्री यदुनाथजी अपने बड़े भाई श्री बालकृष्णलाल, (जो श्री गुसाईंजी के तीसरे बालक थे), के संग श्री दवरिकाधीशजी के सेवा कर रहे थे।

उन्होंने श्री कृष्ण के बाल स्वरूप को श्री द्वरकाधीश के समीप रख कर साथ सेवा करने लगे।

श्री बाल कृष्ण लालजी, श्री गुसाँई जी को साक्षात दर्शन देते थे, लड्डू भोग भी उनके सामने आरोगते थे।

इसी कारण से श्री गुसाईंजी ने उनकी बदरिकाआश्रम के यात्रा में श्री बाल कृष्ण लालजी को अपने संग रखा।

यह दिव्य स्वरूप की गोकुल धाम में सेवा हुई, और बाद में अहमदाबाद। वर्तमान में आप सूरत, गुजरात में विराजमान हैं।

सेवा स्वरूप के मूल आचार्य श्री बाल कृष्ण लाल और श्री यदुनाथजी हैं।


पाट उत्सव अशविन शुक्ल १२ को मनाया जाता है।

सषठा पीठ: श्री बाल कृष्ण लालजी

जय श्री राधेकृष्ण 🙏🙏

श्रीनाथजी ठाकुरजी की जय हो🙏🙏






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