“..इसीलिए सोचा की तू और सुधीर वृंदावन में ही तो हो, अभी तेरे साथ सत्संग करने आ गया..”
"भादरवा सूद चौथ है, गणपति दादा के आगमन का दिन”, श्रीजी की हाजिरी आज हमें आनंदित कर देती है...
25.09.2017
आभा, "श्रीजी आज आप इतनी फुर्सत में कैसे हैं, इतनी शान्ति से बैठे हैं? आम तौर पर सुबह के समय तो आप भाग दौड़ ही करते रहते हैं?"
श्रीजी थोड़ी गम्भीर आवाज़ में जवाब देते हैं,
"आभा शाहरा श्यामॉ, क्या करूँ, आज गणपति चौथ है ना, तो मेरे सेवक लोग उसमें थोड़े व्यस्त हो गए हैं, मेरा काम थोड़ा ढीला ढीला हो रहा है आज, इसलिए मैं भी थोड़ी फुर्सत से बैठा हूँ।
बहुत से सेवक के यहाँ गणपति आते हैं तो सीधी बात है ना, अगर मेरे यहाँ थोड़ा विलम्ब हो गया तो चला लेना पड़ता है ना. फिर आज नाथद्वारा में इतनी भीड़ भी नहीं है, तो वी भी ठीक है।”
"इसीलिए सोचा की तू और सुधीर वृंदावन में ही तो हो अभी, तेरे साथ सत्संग करने आ गया।
जैसे मेरा नाथद्वारा ख़ाली है, मेरे वृंदावन और गोवर्धन भी तो ख़ाली है। तू और सुधीर यहीं तो बैठे हो, देख देख बाहर जाकर देखो जरा ।”
श्रीजी फिर हँसकर आगे कहते हैं, "लेकिन मैं उन सब सेवक और भक्त की भावना को समझता हूँ, उनकी सभी की भावना की कदर करता हूँ, और सभी सेवक की भावना में सहयोग भी करता हूँ”।
"आभा शाहरा श्यामॉ, मैं तो तेरे साथ मस्ती कर रहा था, सब ठीक ठाक ही है; सभी भक्त अपनी अपनी भावना से भक्ति करते हैं, वो ही सही है।
आज मेरे मंदिर में गणपति दादा के भाव से हरी द्रौब भी धरते हैं”।
जय हो मेरे श्रीनाथजी बाबा की
प्रभु🙏आपकी आभा शाहरा श्यामा
हे प्राणाराध्य, प्राण सखा, मन आप के ही श्रीचरणों में हमेशा रचा बसा रहे। मन बुद्धि चित्त का विश्राम प्रभु आपके ही श्री चरणों मे ही पाया है हे सर्वशक्तिमान सर्वाधार ,आपही शांति व आनंद का केन्द्र है जन्मो जन्मो के इन्तेजार के बाद ये बात समझ आई है अब यहाँ तक पहुंच आप सिंधु में ये बिंदु विलीन होना चाहती है। सुना है आप की तरफ कोई एक पग रखता है आप दस पग चल उसको गले लगा लेते हो । आप ही वो शक्ति प्रदान कीजिये जिस से मैं सभी प्रकार काम, क्रोध ,लोभ, मोह ,ईर्ष्या ,द्वेष आदि विघ्नों को पार कर आप के राह पर जहाँ क्षमा,सरलता,अहंकार शून्यता स्थिरता "अनन्यता "आदि सात्विक व शुद्ध भावनाएं मेरे अन्तःकर…