१०.११.२०१७; वृंदावन धाम
‘श्रीनाथजी की एक खेल वार्ता ज्योतिष शास्त्र पर, श्री गुसाँईजी के साथ’
आज के स्वप्न में:
श्रीनाथजी का दिव्य विवरण उनके ही मधुर शब्द, मैंने कोशिश करी है पूर्णता से वही रखने की।
ShreeNathji leela with Shri Gusainji several years ago
Narration by ShreeNathji Himself:
श्रीजी कहते हैं, “चलो आभा शाहरा श्यामॉ आज कुछ अच्छा बताता हूँ तुझे, सुनेगी क्या?”
आभा, “जरूर श्रीजी, हमें तो हमेशा उत्सुकता रहती है, कुछ नया सुनने की। बताने की कृपा करें”🙏
श्रीजी वार्ता सुनाते हैं, “सुन तो; एक दिन गुसाँईजी के साथ कुछ खेल करने का मन हुआ। मैं उसके पास गया और अपना पैर दिखा कर बोला; ‘ गुसाँई जी ये देखो मेरे पैर में चोट आइ है, ज़रा पंचांग देख कर बताओ ऐसा कौन सा बुरा समय था की मुझे आज चोट लगी।मेरी चोट तो बहुत ही छोटी सी थी, लेकिन मैंने दिखाने के वक्त उसे इतना बड़ा कर के दिखाया, हा हा।
(गुसाँई जी से मस्ती करनी थी। वो ज्योतिष शास्त्र के बहुत बड़े जानकार थे और ज्ञानी भी);
“हाँ तो बताओ कौन सा खराब महूरत था जब मुझे लगी?
गुसाँई जी ने चोट देखी और गर्दन हिला कर कहा, “हाँ बाबा चोट तो लगी है, किंतु महूरत देखने के लिए जरा मुझे बताइए किस ‘समय’ चोट लगी थी। उस ‘समय’ के अनुसार मैं पंचांग देखता हूँ”।
अब मैं तो चुप; मुझे तो याद भी नहीं था और कोई ऐसी चोट भी नहीं थी, क्या करूँ? सोचता था।
तो मैं ने गुसाँईजी से कहा, ‘मैं जरा सोचता हूँ, थोड़ा वक्त दो’;
और भागा ‘मेरा पंचांग’ देखने के लिए। क्योंकि अगर मैं कोई भी समय बता देता और वह ‘चल लाभ अम्रत’ का महूरत होता तो मैं पकड़ा जाता। इसलिए मैं देखने भागा की कौन से ‘समय’ में ‘काल, राहु काल,’ था उस दिन।
और मेरी प्रतिकृति उनके सामने बिठा दी, जिस से उनको लगे मैं सामने बैठा सोच रहा हूँ।
पंचांग जल्दी जल्दी देख कर वापस आया, ‘हाँ मुझे याद आ गया, ... इस समय लगी थी, अब जल्दी से देखो और बताओ’।
गुसाँई जी देखते हैं और कहते हैं, ‘हाँ बाबा यह तो राहु काल का समय था; किंतु इस समय अगर लगी है तो यह जल्दी ठीक होने वाली नहीं है, ये तो अब और फूल कर इतना बड़ा हो जाएगा’।
मैं तो फँस गया, अब क्या करूँ? मैं सोचता हूँ की शायद से गुसाँई जी ने मुझे पकड़ लिया है।
इतने में वो बोलता है, ‘श्रीजी ऐसा करो, एक बार फिर से सोचो सही समय क्या था, हो सकता है गलत याद आया हो’।
मैं खुश हो गया, ‘हाँ हाँ जरूर हो सकता है मेरे याद करने में कुछ गलत हो गया हो, मैं फिर से याद करता हूँ’।
मुझे मेरी बात ठीक करने की जगह मिल गयी, मैं फिर भागा और पंचांग देखा की ‘चल,लाभ,अम्रत’ कब का है।
और आ कर वो समय बता दिया। ‘गुसाँई जी याद आ गया, ... ये समय था, शायद पहली बार गलत बता दिया था’।
उसने पंचांग देखकर बताया, ‘चलो श्रीजी बच गए, ‘चल’ में लगी थी चोट, तो चलता है कोई चिंता की बात नहीं है, क्योंकि चल के बाद लाभ है और लाभ के बाद अम्रत और शुभ है, तो सुबह तक बिलकुल ठीक हो जाएगी, आप जाइए खेलिए, कोई चिंता की बात नहीं है’।
तो फिर मेरी चोट को मैं ने जल्दी से छोटा कर दिया और गायब हो गयी।
गुसाँई जी मेरी मस्ती खेल पकड़ लेते थे किंतु हमेशा मुझे रास्ते भी बता देते थे।
मुझे भी आता है पंचांग देखना, हाँ ... नक्षत्र, होरा, महूरत सब देखना आता है मुझे, भले ही पाठशाला में पढ़ने नहीं गया.. हा हा हा।
और गुसाँई जी के पुत्र गोकुल नाथ ने तो ज्योतिष शास्त्र आधारित ‘वाचनामृत कोठा’ की रचना की थी।
गुसाँईजी मेरे बहुत ही प्रिय थे; हम लोग ऐसे ही खेलते थे। सब को खुशी बाँटनी चाहिए, इसलिए ये वार्ता सब को सुनाना”।
ऐसे श्रीजी प्रभु ने वार्ता पूर्ण करी
जय हो प्रभु 🙏
आपकी लीला और खेल बहुत आनंद प्रदान करते हैं
श्रीनाथजी की जय हो!
हमेशा आपकी भक्ति में
Abha Shahra Shyama
प्राणाराध्य श्रीजी , हम सब तो आप को अपनी सुनाते है आपकी आवाज़ तो वोही सुन पाता है जिसकी तार आप से सद्गुरु जोड़ते है फिर तो electric current की तरह ये विद्युत धारा प्रवहमान हो चलती है जैसे हमारे आदरणीय आभा जी.As GuruShreeji always says that Abha ji is the most pious and blessed soul with whom The Divine Supreme Energy confabulate.
आप के खेल आपकी लीला विचित्र मन को लुभाने वाली व आनंद देती है आपकी दिव्य वार्ता मन को आप आनंद के सागर के भीतर ले जाती है जहां से बाहर आने को मन ही नही करता प्रभु बरबस खींचा चला जा रहा है उस प्रेम डोर की भांति जिसका एक अदृश्य सिरा आपके हाथ में है।इ…