आज बहुत महीनों के बाद गुरुश्री से मिलने जाना हुआ।
उनकी सर्जरी के पश्चात आज पहली बार मिलने जाना हुआ है। Covid चल रहा है, इसलिए वे बाहर के किसी व्यक्ति से नहीं मिल रहे थे।
मेरे घर से निकलने से पूर्व गुरुश्री का संदेश आता है, “श्रीजी तुम्हारे साथ आने वाले हैं, निकलने से पहले श्रीजी को याद कर साथ चलने के लिए जरूर विनती करना; उनका गाड़ी में घूमने का मन हो रहा है तो वे गाड़ी में तुम्हारे साथ मेरे यहाँ पधारेंगे”।
कहीं भी जाने से पहले हम गाड़ी में शुद्धि करन के लिए ‘धूप’ जरूर करते हैं; श्रीजी को कार में घूमने में बहुत आनंद आता है, और अक्सर हमारे साथ घूमने निकलते हैं।
गुरुश्री के घर पहुँचती हूँ और जैसे ही भीतर जाती हूँ, श्रीजी उनके छवि में से पवित्रा गिरा देते हैं। हम सभी आश्चर्य चकित हैं;
गुरुश्री हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए श्रीजी से विनती करते हैं, “श्रीजी आप बहुत ही नटखट हैं, आपकी कृपा है”।
और पवित्रा ठीक करते हुए श्रीजी से कुछ वार्तालाप करते हैं।
गुरुश्री हंसते हुए मुझे देख कर कहते है, “श्रीजी बताना चाह रहे हैं की वे आप के संग कार में पधारे हैं, उन्हें आनंद है, इसलिए मस्ती में पवित्रा एक तरफ से गिरा दिया”।
(यह छवि श्रीजी का मंगला स्वरूप है, जो करीब ३० वर्ष से गुरुश्री के हॉल में विराजित है.. श्रीजी की मन पसंद छवि है यहाँ रहने के लिए)
हम सभी श्रीजी को प्रणाम करते हैं;
तभी गुरुश्री हमें याद दिलाते हैं उस नटखट खेल का जो ठाकुरजी ने २००८ में भी करा था।
यह बात २००८ से है।
दोपहर का समय है, हम गुरुश्री के दफ्तर मंदिर में सत्संग कर रहे थे।
उतने में मेरे बालक का फोन आता है, उसे किसी शुभ कार्य के लिए उच्च महूरत चाहिए था।
क्योंकि गुरुश्री ज्योतिष ज्ञान भी रखते हैं उसने मुझे फोन करा।
मैंने गुरुश्री से पूछा और बता दिया।
लेकिन लगता था की बच्चा अभी भी आश्वस्त नहीं हो पाया था। उसे शायद नई कम्पनी का काम शुरू करने में कुछ आशंका थी।
गुरुश्री इस झिझक को समझ गए और मैंने देखा वे श्रीजी से कुछ प्रार्थना कर रहे हैं।
अचानक कुछ पल में उनके चेहरे पर अलोकिक मुस्कान बिखर गई और मुझ से कहा, “उस से कहो उसके पीछे जो श्रीजी की छवि है, उसे ध्यान से देखे। श्रीजी ने अभी उसमें एक डाइमंड गिराया है; बच्चे को आशीर्वाद के रूप में। उसे यह एहसास करवाने की श्रीजी का आशीर्वाद भी उसके साथ है”।
मैंने उसे फोन कर समझाया। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो वाकई में एक छोटा सा हीरा फ्रेम के भीतर कोने में गिरा हुआ था।
फिर क्या था! इतना साक्षात्कार होना बहुत ही दुर्लभ है। श्रीजी कब क्या अलोकिक खेल करें, उनकी कृपा है।
(ये मंगला दर्शन की छवि है, जो हम नाथद्वारा से लाए थे और जिसका स्थापन स्वयम् गुरुश्री के हाथों हुआ था। श्रीजी प्रभु जिनकी उपस्थिति ज्यादातर हमारे सत्संग में पूर्ण रूप से रहती हैं, ने इस वार्तालाप को सुन लिया था। एक पल में वे बच्चे के ऑफिस भागे और यह अलोकिक खेल करा।
श्रीजी और गुरुश्री का सम्बंध एक अद्रश्य डोर से बंधा है। बच्चे के ऑफिस और गुरुश्री के दफ्तर में ४५ km का अंतर है)।
नाथद्वारा मंदिर में यह वास्तविकता है.. जब भी श्रीजी को कुछ दर्शाना होता है वे या तो कुछ गहना गिरा देते हैं या वस्त्र, भीतरी निज सेवक इस सत्य के साक्षी हैं।
यह वार्ता श्रीनाथजी प्रभु के आदेश और गुरुश्री की आज्ञा लेकर प्रस्तुत करा है।
जय ठाकुरजी श्रीनाथजी प्रभु
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