नाथद्वारा श्रीनाथजी का नगर है, जो राजस्थान राज्य में उदयपुर के निकट स्थित है।
नाथद्वारा प्रिय श्रीनाथजी से संबद्ध रखता है, जो श्रीराधाकृष्ण के नवीनतम अवतार हैं। श्रीनाथद्वारा एक बेहद छोटा नगर है, जो श्रीनाथजी की हवेली के लिए निर्माण करा गया था। कई बार लोग शहर को श्रीनाथजी के नाम से ही बुलाते हैं।
View of Nathdwara from Giriraj
जब श्रीजी गिरिराज गोवर्धन से निकल कर यहां पधारे थे, तब इस स्थान के मूल नाम ‘सिंहद’ को बदल कर नाथद्वारा कर दिया गया।
ठाकुरजी श्रीनाथजी श्रीराधाकृष्ण के आज पृथ्वी पर एक मिश्रित स्वरुप हैं।
गिरिराज गोवर्धन उनके प्रकटीकरण का चयनित स्थल है, जहां पर वह 1409 ईसवी में प्रकट हुए। जहां पर उन्होंने लगभग 250 वर्षों तक अपने भक्तों के साथ स्नेहिल लीला की थी। नाथद्वारा वह स्थान है, जहां पर वह गिरिराज गोवर्धन से प्रस्थान कर पधारे थे।यह स्थानांतरण लगभग 340 वर्ष पूर्व हुआ था और वह आज तक वहीं बिराजते हैं।
श्रीनाथजी का नाथद्वारा जाना उनका अपने भक्तों के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है, जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण अजब कुंवरी है, जो मेवाड़ के राजसी परिवार से संबद्ध रखती थी।
नाथद्वारा राजस्थान के राजसमंद जिले में बनास नदी के तट पर स्थित है। यहां से निकटतम हवाईअड्डा उदयपुर है, जो यहां से 48 किमी की दूरी पर स्थित है और यह राजस्थान के सभी प्रमुख शहरों से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है।
Bananas river and Govardhan parvat at Nathdwara
श्रीनाथजी का शहर सफ़ेदी करा हुआ लगता है। यहां के प्रत्येक घर और दीवार पर चित्रकारी की गयी है। इसका बेहद परंपरागत स्वरुप है। नाथद्वारा का पूरा नगर इसका प्रतिनिधित्व करता है। यहां की सभी सड़कें बहुत संकरी हैं तथा सभी केंद्रीय चौक की ओर ले जाती हैं, जहां पर श्रीजी की हवेली स्थित है। इस हवेली में केवल पैदल पहुंचा जा सकता है और यहां पर आने के लिए 1/2 किमी पहले ही कार को छोड़ देना पड़ता है। यहां की पतली गलियों में केवल स्कूटर से जाया जा सकता है।
A lovely Kadamb tree in the parisar of a home
Narrow roads which all lead to ShreeNathji Haveli from all sides
श्रीजी की हवेली एक ऐसा स्थान है जहां पर वे पूरी रवानी में निवास करते हैं। यह उनका घर है और सभी सेवक व सच्चे भक्त यह जानते हैं कि उचित भाव के साथ इस दिव्य उपस्थिति का अनुभव किया जा सकता है।
श्रीजी की उपस्थिति पूर्ण है, इसलिए सभी लोग उनकी जीवंत उपस्थिति को स्वीकार करते हैं और ऐसी मान्यता है कि वे इस हवेली में निवास करते हैं।
यह अन्य हिन्दू मंदिरों से भिन्न है, क्योंकि प्रभु स्वयं ही यहां पर बेहद सजीव स्वरुप में निवास करते हैं।
इस शहर में प्रवेश करते समय मैंने सदैव एक सशक्त शक्ति महसूस करी है, जो मुझे अपने प्रभाव में ले ले लेती है, और एक अनोखे दिव्य अहसास में खो जाती हूँ।
श्रीजी की उपस्थिति बेहद स्वागतकारी है, ऐसा महसूस होता है कि वह स्वयं ही इस नगर में हमारे स्वागत के लिए उपस्थित हैं एवं एक बेहतरीन मेजबान के समान स्वागत कर रहे हैं।
और जब मैं इस भाव में गहराई से प्रवेश करती हूँ, तब मैंने इस दिव्य और मधुर बाल स्वर की प्रतिध्वनि को सुना,
ठाकुरजी श्रीनाथजी सदैव ही हम सभी से प्यार से कहते हैं,
‘‘तुम लोग मुझसे मिलने आए हो, मैं तुम्हारा ध्यान तो रखूंगा ही।’’
यह सबसे मधुर आवाज थी जिसे सुना जा सकता था और यह नटखटपन व क्रीड़ा से परिपूर्ण होती है।
श्रीजी ने मथुरा से मेवाड़ जाने का निर्णय उनकी प्रिय भक्त अजब कुँवरी के प्रति जो उनकी प्रतिबद्धता थी उसे निभाने के लिए करा था।
इस कारण उन्होंने ऐसी परार्थिति सर्जन करी, जिस कारण से सेवक उन्हें गिरिराज जी से दूर ले जाने पर मजबूर हो गए।(विवरण अन्य पोस्ट में है)।
इस वार्ता के बाद यह स्पष्ट होता है कि श्रीजी का रथ ठीक उस स्थान पर रुक गया, जिसके विषय में श्री गुसाइंजी ने वर्षों पूर्व भविष्यवाणी की थी। यह वही क्षेत्र था जहां वर्षों पूर्व अजब कुंवरी की हवेली थी।
यह महत्वपूर्ण स्थान व्रज मंडल गिरिराजजी से उनके प्रयाण का उनका अंतिम गंतव्य बन गया।
श्रीनाथजी का सर्वाधिक मनपसंद स्थान नाथद्वारा में उनकी हवेली से लगभग 3 किमी दूरी पर स्थित उनकी व्यक्तिगत गोशाला है।
यह स्थान सुंदर पहाड़ियों से घिरा एक बेहद सुरम्य स्थल है और यहां पर खुला हुआ एक लंबा चैड़ा मैदान है, इसका नियोजन किया गया और हवेली के साथ ही इसका निर्माण कराया गया। यहां पर 2000 गाय हैं और क़रीब 50 ग्वालों का स्टाॅफ, जो इसकी देख-भाल करता है।
कई बार मैंने यह महसूस किया है कि श्रीजी अपने मंदिर से बाहर निकल जाना पसंद करते हैं, विशेषकर जब गुरुश्री नाथद्वारा में होते हैं; और हमारे साथ गोशाला में समय बिताते हैं। इसकी अनुभूति होती है, जब उनके मधुर स्वर ने उनकी गोशाला की कुछ घटनाओं का विवरण करते हैं। वे स्वयं बताते हैं, की उन्हें यहाँ गौशला में गौमता के बीच कितना आनंद आता है।
अगर आप कुछ समय के लिए भी दुनिया दारी को छोड़ सकें, दर्शन करते समय, पूर्ण भाव-शुद्धि से प्रभु के दर्शन करें, आप श्रीनाथजी से बहता अहुआ प्रेम और आनंद में बह सकेंगे।
ये जानिए, ठाकुरजी केवल आप से प्रेम और भाव चाहते हैं; प्रति दिन आठ बार सज-धज कर मंदिर में आप के सन्मुख खड़े रहते हैं, सिर्फ़ इसलिए की आप वैष्णव को दर्शन हो;
किंतु अगर हम लौकिक जगत में ही हर समय डूबे रहें, श्रीजी से प्रवाहित होने वाला दिव्य प्रेम हमारी मानसिक अशुद्धि के कारण हमारे प्रभामंडल व स्पंदन को सकारात्मक रुप से प्रभावित करने में विफल रहता है।
गुरुश्री से शुद्धि पालने के नियम सिखे हैं, जो अलोकिक़ अनुभूति समझने में मदद करते हैं, ख़ास कर जब श्रीनाथजी के सन्मुख खड़े हों।
प्रभु अज्ञात तरीके से कई कार्य करते हैं। भौतिक जगत को यह दिखाई नहीं देता कि आखिर क्यों अचानक ही कुछ अज्ञात घटनाएं घटित हो जाती हैं। इसे केवल ठाकुरजी की लीला समझ कर आनंद ले सकते हैं। सिर्फ़ आनंद लें क्योंकि ईश्वर इन्हें गोपनीय रखना चाहते हैं।
श्रीनाथजी ठाकुरजी की सेवा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामग्री भाव एवं शुद्धि है, जिस के बिना श्रीनाथजी की पूर्ण जीवंत अलोकिक़ मौजूदगी को हम महसूस नहीं कर पाएँगे, और किसी भी प्रकार के दिव्य अनुभव से वंचित रह जाएंगे।
नाथद्वारा में श्री गिरिराजजी का भाव:
जब नाथद्वारा में श्रीनाथजी को स्थापित कर रहे थे, तब इस बात पर ध्यान दिया गया कि यह पर्वत गिरिराज गोवर्धन का प्रतिनिधित्व कर सकता है और यहां से जो बनास नदी बहती है वह श्री यमुनाजी का प्रतिनिधित्व करेगी।
यह सुनिश्चित किया गया कि हमारे प्रिय श्रीजी बाबा व्रज मंडल के निकट महसूस करें, जहां से वे नाथद्वारा में रहने के लिए आए थे, और आवश्यक वर्षों तक आनंदपूर्वक रह सकें। यहां पर उनका निवास उनकी प्रिय भक्त अजब कुंवरी के प्रति उनकी वचनबद्धता को प्रदर्शित करता है, जिसके साथ श्रीजी श्री गुसाइंजी के समय में प्रत्येक रात्रि चैपड़ खेला करते थे।
इस पर्वत के शिखर पर एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है, जो श्रीनाथजी की हवेली के समय स्थापित करा गया था।
नाथद्वारा में स्थित इन भाव गिरिराजजी की परिक्रमा 3.5 किलोमीटर लंबी है। इसे पूरा करने में लगभग 3 घंटे लगते हैं।
जय श्री कृष्ण राधे कृष्ण
View of the Banaas river which represents Shri Yamuna ji, and the parvat which represents the Giriraj Govardhan at Nathdwara
Ancient Shivji mandir on Giriraj parvat.
At Rajbhog Darshan, it is believed that sakshat Bhagwan Shivji is seated on the round semicircle before Shreeji, in the Dolti Bari doing ShreeNathji’s Darshans.
Comments